Rahasyo ki Duniya पर आप लोगों का स्वागत हैं, आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक रहस्मय शख़्स  के बारे में। जो लाशों को डायमंड में बदल देता हैं। लाशों को डायमंड में बदलना इस शख़्स  का पेशा हैं। इस अजीबो गरीब शख्स का नाम हैं Ronaldo  Willy
Story of Rinaldo Willy  The Man Who Transforms Corpses into Diamonds
यदि आप अपने किसी प्रियजन की मृत्यु के बाद उसकी लाश को डायमंड के रूप में हमेशा अपने पास रखना चाहते हो तो आप Ronald  Willy से सम्पर्क कर सकते हैं। यह बात आपको सुनने में बेशक अजीबो गरीब लगे लेकिन यह बात बिल्कुल सत्य हैं।

Story of Ronaldo Willy :Man Who change Dead Body into Daimond :-

स्विट्जरलैंड के रोनाल्डो विल्ली  एक कंपनी Algordanza चलते हैं जहा की एडवांस्ड तकनीक का प्रयोग करते हुए, इंसान के अंतिम संस्कार के बाद बची राख को डायमंड में बदल देता हैं। Algordanza  एक स्विस शब्द हैं जिसका हिंदी में अर्थ होता हैं "यादें" 
यह कंपनी हर साल लगभग 850 लाशों को डायमंड में बदलती हैं। लाश को डायमंड में बदलने का खर्चा इसकी size पर निर्भर करता हैं जो की 3 लाख से 15 लाख के बीच में पड़ती हैं।

Ronaldo Willy को यह idea कैसे आया :-

रोनाल्डो विल्ली को ह्यूमन  राख से डायमंड बनाने का आईडिया कैसे आया इसके पीछे एक बड़ी ही रोचक कहानी हैं। लगभग 10 साल पहले रोनाल्डो विल्ली के एक टीचर ने उसे एक आर्टिकल पढ़ने को दिया जो की सेमी कंडेक्टर इंडस्ट्रीज में प्रयोग होने वाले सिंथेटिक डायमंड के उत्पादन के ऊपर था। उस आर्टिकल में यह बताया गया था की किस तरह राख(एशेज़) से डायमंड बनाये जा सकते हैं। रोनाल्डो ने गलती से ह्यूमन ऐशेज समाज लिया जबकि आर्टिकल में वेजिटेबल एशेज का जिक्र था। 
रोनाल्डो को यह idea बहुत पसंद आया और उसने अपने टीचर से ह्यूमन एशेज को डायमंड में बदलने के बारे में जानकारी मांगी तह टीचर ने बोलै की तुम गलत समझ रहे हो ये ह्यूमन एशेज नहीं बल्कि वेजिटेबल एशेज की बात हो रही हैं। 
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इसपर रोनाल्डो ने कहा की अगर वेजिटेबल एशेज को डायमंड में बदला जा सकता हैं तो ह्यूमन एशेज को डायमंड में क्यों नहीं बदला जा सकता हैं ?
टीचर  idea  आया और उन्होंने उस आर्टिकल के लेखक किया, जो की वही स्विट्जरलैंड में थे और उनके पास सिंथेटिक डायमंड बनाने की कुछ मशीन भी थी। फिर उन्होंने इस idea पर काम करना शुरू किया और कंपनी Algordanza की स्थापना की।

कैसे बनता हैं डायमंड :-

ह्यूमन एशेज से डायमंड बनाने के लिए सबसे पहले ह्यूमन एशेज को स्विट्जरलैंड में स्थित अपनी लैब में मंगवाते हैं।  लैब में एक विशेष प्रकिया के द्वारा उस ह्यूमन एशेज के कार्बन को अलग किया जाट हैं।  इस कार्बन को बहुत अधिक तापमान पर गर्म करके ग्रेफाइट में परिवर्तित किया जाता हैं फिर इस ग्रेफिटे को एक मशीन में रखा जाता है जहां पर ऐसी ही कंडीशन बनाई जाती हैं जैसी जमीन के बहुत नीचे होती हैं यानी बहुत अधिक दबाव और बहुत अधिक तापमान।  इस कंडीशन में ग्रेफाइट को कुछ महीनो के लिए रखा जाता हैं।  जिससे की वो ग्रेफाइट डायमंड  में बदल जाता हैं। 
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सिंथेटिक डायमंड और रियल डायमंड में अंतर :-

रासायनिक सरचना और गुणों के आधार पर सिंथेटिक डायमंड और रियल डायमंड्  में कोई फर्क नहीं होता हैं।   रासायनिक सरचना में और रासायनिक गुणों में सामान होते है।  एक मात्र फर्क इनकी कीमतों में होता हैं। रियल डायमंड , सिंथेटिक डायमंड से महंगे होते हैं।  इन दोनों डायमंड में फर्क  होता हैं  अनुभवी ज्वेलर्स भी उनमे फर्क नहीं कर सकते हैं।  इनमे फर्क करने का इक मात्र तरीका केमिकल स्क्रीनिंग हैं जप की लैब में ही हो सकती हैं। 

ब्रांच :-

वर्ल्ड में इनकी फिलहाल 12 देशों में ब्रांच हैं, जिनमे एशिया में 4 (जापान,सिंगापूर,हॉंकॉंग,थाईलैंण्ड) हैं।   अपना आर्डर दे सहते हैं।  भारत में फिलहाल इनकी कोई ब्रांच नहीं हैं। 
Algordanza के कुल बिजनेस में, अकेले जापान की हिस्सेदारी 35 % हैं। इसके दो मुख्य कारण हैं एक तो जापानी लोगों का अपने परिजनों के प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव/प्रेम होता है और दूसरा वहां अधिक़तर लोगो का विद्युत शवगृह में ही अंतिम संस्कार किया जाता हैं जिससे की ह्यूमन एशेज प्राप्त हो जाती हैं , जबकि वेस्टर्न कन्ट्रीज में अधिकतर शवों को दफनाया जाता हैं।


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