बाजीराव मस्तानी की अधूरी प्रेम गाथा की दास्तान को गाता यह किला। इस किले में हैं भूतों का डेरा। लोग जाने से डरते हैं और यह किला पेशवाओं  उन्नति और पेशवाओं के पतन की कहानी का एकलौता गवाह हैं। इस किले के बारे में कई  कहानिया सुनने को मिलती हैं। 

आइये जानते हैं इस किले के बारे में और इसके भूतिया रहस्य के बारे में 

दफ़न हैं इस किले में मराठाओं का इतिहास 

Shaniwar wada pune kila

शनिवार वाडा किले की नींव 10 जनवरी 1730 को शनिवार के दिन रखी गयी थी। भारत की एतिहासिक धरोहर शनिवार वाडा किला पुणे (Shaniwar Wada Fort Pune) , महाराष्ट्र का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। शनिवारवाड़ा किला महाराष्ट्र की सबसे Haunted जगहों में शामिल हैं।

Shaniwar wada किला मराठाओं के एक काले अध्याय को और एक अन्याय की कहानी को आज भी चीख चीख कर कहता है। धोखा जो बाजीराव ने काशीबाई को दिया था। बाजीराव मस्तानी की अधूरी प्रेम कहानी की इस किले में दफ़न हैं।

यह किला भारत के सबसे रहस्यमयी/डरावनी जगहों (Top Most Haunted Places Of India) में शामिल हैं।

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शनिवार वाडा किले का निर्माण (Shaniwar Wada Fort Constrution)

शनिवार वाडा फोर्ट  पुणे (shaniwar wada pune) का निर्माण पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा करवाया गया था, जो मराठा शासक छत्रपति साहू के पेशवा/प्रधान थे। इसकी नींव 10 जनवरी 1730 को शनिवार के दिन रखी गई थी। शनिवार के दिन नींव रखे जाने के कारण इस किले का नाम ‘शनिवार वाडा’ (Shaniwar Wada) पड़ा।

इस 7 मंजिला किले के निर्माण की जिम्मेदारी राजस्थान के ठेकेदारों को सौंपी गई, जो ‘कुमावत क्षत्रिय’ (Kumawat Kshatriya) कहलाते थे। इसे पूर्णतः पत्थरों से निर्मित किये जाने की योजना थी। किंतु सतारा की प्रजा द्वारा राजा साहू से शिकायत की गई कि पत्थरों से ईमारत के निर्माण का अधिकार केवल राजाओं का है। जिसके पश्चात राजा साहू द्वारा पेशवाओं को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति जताई गई और शनिवार वाडे का निर्माण पत्थरों के बजाय ईंट से करने को कहा। उस समय तक किले का आधार तैयार हो चुका था। राजा साहू की बात मानकर पेशवाओं ने किले की शेष मंजिलों का निर्माण ईंटों से करवाया।

 किले के निर्माण हेतु प्रयुक्त टीक की लकड़ी जुन्नार के जंगलों (Junnar Forest) से, पत्थर चिचवाड़ की खदानों (Chinchwad Mines) से और चूना जेजुरी खदानों (Jejuri Mines) से लाया गया था।

 625 आर्क में निर्मित इस किले के निर्माण में कुल रुपये 1,61,100-00 खर्च हुए। भव्य किले के सफ़लता पूर्वक निर्माण के उपरांत प्रसन्न होकर पेशवाओं ने राजस्थान के ठेकेदारों को ‘नाईक’ की उपाधि से अलंकृत किया। 22 जनवरी 1732 को शनिवार के दिन ही किले का उद्घाटन संपन्न हुआ।

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शनिवार वाडा किले की संरचना (Shaniwar Wada kila Architecture)

शनिवार वाडा फोर्ट में प्रवेश हेतु 5 दरवाजे बने हुए हैं, जिन्हें विभिन्न नाम दिए गए है

दिल्ली दरवाज़ा (Dilli Darwaza or Delhi Gate) – यह किले का मुख्य द्वार है। यह उत्तर दिशा में दिल्ली की ओर खुलता है। इस कारण इसे ‘दिल्ली दरवाज़ा’ भी कहा जाता है। उत्तर में दिल्ली की ओर करके यह द्वार बनाने के पीछे पेशवा बाजीराव की मुग़ल साम्राज्य की समाप्ति की महत्वाकांक्षा भी मानी जाती है। यह दरवाज़ा काफ़ी ऊँचा और चौड़ा है। इतना कि पालकी सहित हाथी को यहाँ से निकाला जा सकता है। इस दरवाज़े पर दोनों पलड़ों पर 72 नुकीले कीलें लगी हुई हैं, जिनकी लंबाई 12 इंच है। यह शत्रु के हाथियों के हमले से रक्षा के लिए दरवाज़े पर लगाई गई हैं। दरवाज़े के दाहिने पलड़े पर सैनिकों के आने-जाने के लिए एक छोटा द्वार बना हुआ है. ये दरवाज़ा काफ़ी छोटा है, जिससे कोई सेना आसानी और जल्दी से इसमें प्रवेश नहीं कर सकती। ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था।

मस्तानी दरवाज़ा या अलीबहादुर दरवाज़ा (Mastani Darwaza or Mastani Gate or Alibahadur Gate) – यह दरवाज़ा उत्तर दिशा में खुलता है। पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नि मस्तानी बाहर जाते वक़्त इसी दरवाज़े का इस्तेमाल करती थी। इस कारण इस दरवाज़े को ‘मस्तानी दरवाज़ा’ कहा जाने लगा। इसे ‘अलीबहादुर दरवाज़ा’ का नाम भी दिया गया है।

खिड़की दरवाज़ा (Khidki Darwaza or Window Gate) – यह दरवाज़ा पूर्व दिशा में खुलता है। खिड़की बनी होने के कारण इसका नाम ‘खिड़की दरवाज़ा’ पड़ा।


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गणेश दरवाज़ा (Ganesh Darwaza or Ganesh Gate) – यह दरवाज़ा दक्षिण-पूर्व दिशा में खुलता है। किले परिसर में बने गणेश महल के नज़दीक होने के कारण इसका नाम ‘गणेश दरवाज़ा’ पड़ा। इस दरवाज़े का के द्वारा महिलायें ‘क़स्बा गणपति मंदिर’ (Kasba Ganpati Temple) में दर्शन के लिए आते समय करती थी।

जम्भूल दरवाज़ा या नारायण दरवाज़ा (Zambhul Darwaza or narayan Darwaza or Narayan Gate) – जम्भूल दरवाज़ा दक्षिण दिशा में खुलता है। इसका उपयोग दासियाँ किले में आने-जाने के लिए किया करती थी। इस दरवाज़े का दूसरा नाम ‘नारायणराव दरवाज़ा’ नारायण राव की मृत्यु के उपरांत दिया गया। इसी दरवाज़े से उनका शव किले के बाहर ले जाया गया था।

शनिवार वाडा की मुख्य इमारत के निर्माण के बाद समय-समय पर किले में कई अन्य इमारतों, जलाशय और लोटस फाउंटेन का निर्माण करवाया गया।

 किले की मुख्य इमारत 7 मंजिला थी, जिसकी सबसे ऊंची मंजिल पर पेशवाओं का निवास था, जिसे ‘मेघादम्बरी’ (Meghadambari) कहा जाता था। कहा जाता है कि यहाँ से देखने पर 17 किलोमीटर दूर आनंदी में स्थित संत ज्ञानेश्वर मंदिर के शिखर दिखाई पड़ता था। 1828 में किले में लगी आग में यह इमारत भी नहीं बची। वर्तमान में इसका पत्थर से निर्मित आधार शेष है। इसके अतिरिक्त कुछ छोटी इमारत शेष हैं।
किले की अन्य प्रमुख इमारतों में 3 इमारतें ‘थोरल्या रायांचा दीवानखाना’ (Thorlya Rayancha Diwankhana), ‘नाचचा दीवानखाना’ (Naachacha Diwankhana) और ‘जूना अरसा महल’ (Old Mirror Hall) सम्मिलित थी। ये सभी इमारतें 1828 में किले में लगी आग में नष्ट हो गई। आज उनके अवशेष मात्र देखे जा सकते हैं।

 लोटस फाउंटेन (Lotus Fountain) – शनिवार वाडा का मुख्य आकर्षण कमल के आकार का फाउंटेन है, जो ‘लोटस फाउंटेन’ या ‘हज़ारी कारंजे’ (Hazari Karanje) के नाम से जाना जाता है। इस फाउंटेन में कमल के फूल का आकार लिए हुए 16 पंखुड़ियाँ बनी हुई है, जो कलात्मकता का बेजोड़ नमूना है। एक समय में यहाँ 100 नर्तक नृत्य करते थे। इसकी एक कोने में संगमरमर की बनी गणपति की प्रतिमा स्थापित थी। फाउंटेन के साथ ही यहाँ फूलों का सुंदर बगीचा था।


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शनिवार वाडा का इतिहास (History of shaniwar wada)

सन 1600 में मराठा पेशवाओं के उदयकाल में shaniwar wada kila भारतीय राजनीति का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। परन्तु दुर्भाग्यवश यह बड़े ही रहस्यमयी तरीके से आग की चपेट में आकर नष्ट हो गया और आज यह अवशेष के रूप शेष है। shaniwar wada haunted story in hindi

शनिवार वाडा किले में बाजीराव के बाद इस महल में राजनीत‌िक उथल-पुथल का दौर शुरु हो गया था  इसी राजनीत‌िक दांव-पेंच और सत्ता में लोभ में मराठाओं के 5 वें पेशवा नारायणराव की 16 साल की उम्र में निर्मम हत्या करवा दी थी। कहते है कि उनकी आत्मा इस किले में भटकती है और अंतिम घड़ी में उनके द्वारा ली गई चीखें आज भी इस किले की चारदीवारों में गूंजती है। स्थानीय लोग कहते हैं की इस महल में अब भी अमावस रात को दर्द भरी आवाज आती है जो बचाओ-बचाओ पुकारती है। shaniwar wada story in hindi
आज भी नारायण राव अपने चाचा राघोबा को पुकारते हैं 'काका माला बचावा'। नारायण राव की हत्या क्यों और क‌िस कारण से हुई उसकी एक बड़ी दर्दनाक कहानी है। information about shaniwar wada

Shaniwar Wada Fort Haunted Story

प्रथम पेशवा बाजीराव के दो पुत्र -बालाजी बाजीराव, जो नाना साहेब के नाम से भी जाने जाते हैं और रघुनाथ राव।
बाजीराव प्रथम की मृत्यु के उपरांत नाना साहेब पेशवा बने।
नाना साहेब के तीन पुत्र थे –
1. विशव राव
2. महादेव राव
3. नारायण राव

पानीपत के तीसरे युद्ध में नाना साहेब के प्रथम पुत्र विशव राव की मौत हो गई तो इसके पश्चात उनके द्वितीय पुत्र महादेव राव को गद्दी पर बैठाया गया लेकिन 27 वर्ष की आयु में ही उनकी मौत हो गई फिर तीसरे पुत्र नारायण राव को 17 वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठाया गया।

17 वर्ष के बालक नारायण राव का गद्दी पर बैठना उनके काका (चाची) और काकी (चाची) आनंदी बाई को बहुत खल रहा था। रघुनाथ राव खुद पेशवा बनना चाहते थे, रघुनाथ राव पहले पेशवा महादेव राव की हत्या का प्रयास कर चुके थे जिससे नारायण राव वाकिफ थे और इसी कारण से वे कभी अपने चाचा को पसंद नहीं करते थे और हमेशा उंन्हे शक की नज़रों से देखते थे।

दोनों के संबंध तब और बिगड़ गए जब सलाहकारों के भड़काने पर पेशवा नारायण राव ने चाचा रघुनाथ राव को अपने घर में  नज़रबंद कर दिया। इस बात पर उनकी काकी आनंदी बाई बहुत नाराज़ हो गई।

नज़रबंद होने के बाद रघुनाथ राव ने अपने बचाव के लिए शिकारी कबीलियाई गार्दी (Gardi) के मुखिया सुमेंद्र सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा,जिसमें लिखा था – ‘नारायण राव ला धारा’ जिसका अर्थ था – 'नारायण राव को कैद कर लो'।

ये पत्र पहले रघुनाथ राव की पत्नी आनंदी बाई के पास पहुँचा और मौका देखते हुए उसने घिनौनी चाल चलते हुए उस पत्र के शब्द बदल दिए और ‘नारायण राव ला धारा’ को ‘नारायण राव ला मारा’ कर दिया, जिसका अर्थ था –'नारायण राव को मारो'। 

पत्र मिलते ही सुमेंद्र सिंह गार्दी के लोगों ने शानिवाडा किले पर हमला कर दिया।  जब वे सारी बाधा पार कर पेशवा नारायण राव के कक्ष में पहुँचे, तो नारायणराव उन्हें देखकर अपने चाचा के कक्ष की ओर ये कहते हुए भागा – ‘काका माला वाचवा’ अर्थात् ‘चाचा मुझे बचाओ'। किंतु उसके अपने काका तक पहुँचने के पहले ही गार्दियों ने उसे पकड़कर उसकी मृत्यु कर दी।

इस घटना के संबंध में इतिहासकारों में बहुत मतभेद है, कुछ इतिहासकार इस घटना को सही मानते है परन्तु कई लोगों का कहना है कि नारायण राव अपने काका के सामने ही खुद को गार्दीयोँ से बचाने के लिए प्रार्थना करता रहा, किंतु रघुनाथराव ने कुछ नहीं किया और गार्दियों ने उसकी हत्या कर  उसकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नदी में बहा दिये। 

लोग कहते है कि शनिवार वाडा में नारायण राव की आत्मा भटकती है और उसके द्वारा कहे गए अंतिम शब्द ‘काका माला वाचवा’ आज भी इस किले में सुनाई पड़ते है।  इस कारण इस किले को भुतहा (haunted) माना जाता है ।

17 फ़रवरी 1823 को शनिवार वाडा किले में आग लग गई। 7 दिनों तक इस आग में काबू नहीं पाया जा सका। इस आग में किले का अधिकांश हिस्सा जल गया और आज इसके अवशेष शेष हैं। 


शनिवार वाडा किला कैसे पहुँचे (How To Reach Shaniwar Wada Fort)

पुणे सभी मुख्य शहरों से जैसे जयपुर,मुंबई, दिल्ली,  बैंगलोर आदि से जुड़ा हुआ है।  ट्रेन या flight दोनों के द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है। शनिवार वाडा महाराष्ट्र शहर के बीचों-बीच स्थित है। पुणे पहुँचकर किसी भी लोकल ट्रांसपोर्ट जैसे बस, ऑटो या टैक्सी से यहाँ जा सकते हैं।  PMC (Pune Municipal Corporation) के द्वारा चलाई जाने वाली पुणे दर्शन बस (Pune Darshan Bus) भी पुणे के अन्य पर्यटन स्थलों के साथ शनिवार वाडा भी देख देख सकते है। 

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शनिवार वाडा समय और एंट्री फीस (Shaniwar Wada Fort Timing and Entry Fees)

शनिवार वाडा सुबह 07:00 am बजे से शाम 06:30 pm बजे तक खुला रहता है। भारतीयों (Indian) के लिए 5/- रू प्रति व्यक्ति और विदेशियों (Foreigners) के लिए 125/- रु प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क लिया जाता है। लाइट और साउंड शो के लिए अलग शुल्क हैं। 

शनिवार वाडा लाइट एंड साउंड शो (Shaniwar Wada Fort Light and Shound show)

शनिवारवाडा किले में प्रतिदिन शाम को लाइट एंड साउंड शो आयोजित होता है।  1.25 करोड़ के खर्च पर यहाँ इस शो का सेट-अप किया गया, ताकि लोगों को मराठाओं के समृद्ध इतिहास की जानकारी दी जा सके।  प्रति शाम को 07:25 pm से 08:10 pm तक मराठी में एवं 08:15 pm से 09:10 pm तक अंग्रेजी भाषा में यह शो आयोजित होता है।  इसके टिकट की कीमत 25/- रु प्रति व्यक्ति है, जो शाम 06:30 pm से लेकर 08:30 pm बजे तक ख़रीदे जा सकते हैं। इन टिकटों की advance booking नहीं होती, ये spot पर ही ख़रीदे जा सकते हैं। 

शनिवार वाडा के पर्यटकों के लिए टिप्स (Tips For The Visitors Of Shaniwar Wada Fort)

  1. शनिवार घूमने के लिए काफ़ी चलना पड़ता है. इसलिए आरामदायक जूते पहनना ज़रूरी है। 
  2. जुलाई से लेकर अप्रैल तक का समय मौसम के हिसाब से शनिवार वाडा विजिट करने के लिए बेस्ट है। 
  3. खाने-पीने की कोई व्यवस्था किले के भीतर नहीं है. इसलिए अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर चलें। 
  4. यह की ऑथोरिटी किले की साफ़-सफ़ाई को लेकर सख्त है. किले के परिसर में गंदगी फ़ैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है। 
Q. is shaniwar wada haunted ?
Ans. yes

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