Rahasyo ki Duniya पर आप लोगों का स्वागत हैं, आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक रहस्मय जंगल के बारे में। इस जंगल को लोग Pisaava Forest के नाम से जानते हैं। यह के लोगों का कहना हैं की जो भी इस जंगल में जाता हैं वो कभी लौटकर नहीं आता।  कहा जाता हैं की महाभारत के युद्ध के पश्चात् गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्व्थामा इसी जंगल में छुप गया था। इस जंगल का रहस्य अभी भी अनसुलझा ही हैं।

 'अनजाने स्थान' और 'रहस्य' ये दो ऐसे शब्द हैं जिनका नाम सुनते ही लोगों की दिमाग की नसें तिलमिलाने लगती हैं। ऐसी कोई भी बात लोगों को गौर से सुनने में मदद करती हैं। इनके जरिए ही हम डरते हैं, देखने को उतारू होते हैं। यही नहीं आपने फिल्मों में भी खूब देखा होगा कि कैसे डरावने भूतहा सीन में लोग डर जाते हैं।
वे जंगलों में, इमारतों में अपनी जान बचाने के प्रयास या फिर ऊपरी चक्कर को खत्म करने के लिए भाग-दौड करते हैं। लेकिन ये सब सच होता है क्या? क्या लोग वाकई में अकेले किलों में जाने से डरते हैं? क्या अमुक्त आत्माएं पुराने स्थानों में बसेरा बनाकर रहती हैं?

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ऐसे कई सवाल अक्सर आपके मन को भी कौंधते होंगे। कई लोगों को मानना है कि दुनिया 21वीं सदी में प्रवेश कर चुकी है। विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है मगर जहां तक अंधविश्वास की बात है वो अपनी जगह पर काम कर रहा है। दुनिया के तमाम देशों में पुराने राग अपनी जड़ फैलाए हुए हैं। भारत के परिपेक्ष में भी यह बात लागू होती है। यहां के लोग आज भी भूत-प्रेत, डायन आदि को मानते हैं। ऐसी कहानियों को भी बड़े चाव से सुनते हैं और कोई-कोई बच्चे तो मारे डर के मां को याद करने लगते लेते हैं। सोचिए, अगर वाकई में ये कहानियां हकीकत बनकर सामने आ जाएं तो क्या होगा?
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ऐसा सोचकर कठोर से कठोर व्यक्ति भी कांपने लगता है। इतना ही नहीं कुछ जानकार मानते हैं कि भारत में ऐसी कई इमारते हैं, जो भूत-प्रेत या भटकती आत्माओं के कारण सुर्खियों में रही हैं। ऐसे स्थान हजारों वर्षों से एक भयानक श्राप को झेल रहे हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक जगह और उससे जुड़ी रहस्यमय घटनाओं के बारें में बताने जा रहे हैं।

Pisaava forest:-

स्थानीय लोगों के अनुसार UtterPradesh के Mathura जिले के देहात इलाके में एक ऐसी जगह भी हैं जिसके अंदर घुसने से पर्यटकों का कलेजा कांप जाता है। कारण बताया जाता है कि यहां सर्र-सर्र आवाज आती रहती है और रात में काला-काला पर्दा सा छा जाता है। इतना ही नहीं छाता तहसील के इस Pisaava नामक गांव के पास यह स्थान तरह-तरह के पेडों-हींस-करील और जीवों का बसेरा भी है। यहां हजारों की संख्या में बन्दर रहते हैं। पुराणों में लिखा गया है कि महाभारत में जब युद्ध खत्म हो गया था तो आचार्य द्रोण के महाबलशाली पुत्र अश्ववस्थामा पांण्डवों की जय के बाद से जिन झाड़ियों में प्रवेश कर गए थे वे ये ही हैं। घुमावदार जंगल के इस स्थान पर शनिवार को यज्ञ होता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां परिक्रमा के लिए आते हैं । बच्चे-बूढे़ और महिलाएं तो रोज ही मिल जाएंगे लेकिन वे भी इन झाड़ियों के भीतर नहीं जाते। आप यदि परिक्रमा या पूजन के लिए जाना चाहते हैं तो वाहन चलते हैं लेकिन यहां के प्रशासन और पदाधिकारियों ने अनदेखी कर इसकी प्रसिद्धी को अनजाना बना दिया है।

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    मान्यता है कि Pisaava forest के पास ‘झाडी वाले बाबा’ जंगल से कोई लकडी लेकर बेच नहीं सकता, घर नहीं ले जा सकता। ये बात यहां का हर व्यक्ति जानता है। यदि भूलवश कोई ले जाने की कोशिश करता है तो उसका बुरा होता है। यहां के स्थानीय लोग बताते है कि एक बार एक घमंडी दंबग यहां से पेडों को काटकर बेचने चला था, उसके पशु मर गए थे और वृक्ष काटने वाले आदमी नांक से खूंन फेंककर भाग खड़े हुए थे। तभी से यह बात पुष्ट हो गई कि यहां से कोई लकड़ी नहीं ले जा सकता। हां, यदि आप आस्था कार्यों जैसे पुण्य-प्रसादी और भण्डारा करते हैं तो और भला होगा यहां की लकड़ी लेकर।

    डेंजर इलाके में नहीं जा सकते

    यहां आसपास कई पुराने खण्डहर हैं, जो पता नहीं किसने बनाए हैं। कोई अकेला व्यक्ति तो जाना दूर यहां आए लोग भी ऐसे इलाके में नहीं जाते हैं। इसके कारण खतरनाक कीट-पतंगे या ऊपरी बवाल का होना हो सकता है यह तो वहां जाने से ही स्पष्ट हो सकता है। 

    Pisaava forest का महाभारत से सम्बन्ध 

    कहा जाता  हैं की महाभारत युद्ध के पश्चात् गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा जिनको ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था वो इसी pisaava forest जंगल कि झाड़ियों में चले गए थे।
    कहा जाता है कि जो भी इन झाड़ियों में जाता है वो कभी वापस नहीं आता। 


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